कुछ बहरूपियों ने वर्णसंकर शब्द को शूद्र वर्ण से जोड़ दिया जबकि ऐसा नहीं है। शूद्र वर्ण भगवान को उतनी ही प्रिय है जितनी अन्य। जैसे कि -ब्राह्मण स्वयं के मुक्त होने के लिए शास्त्रोक्त जीवन जीता है और वही संस्कार आगे की पीढ़ी को ट्रांसफर करता है तो मुक्ति मिल जाती है। ज्ञान का दुरूपयोग करने पर ब्रह्मराक्षस की गति भी मिल सकती है। अपने धर्म का पालन करना ही इनका मुख्य धर्म होता है। क्षत्रिय को
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