जब में स्कूल और कॉलेज में था तब जब इस प्रकार की परिभाषा याद करनी पड़ती और लिखनी पड़ती थी तो मन में बड़ा संशय रहता था कि लोग इसे समझाते कुछ और लेकिन पढ़ाते कुछ और है। आज कि इस पोस्ट में में आपको धर्म निरपेक्ष के बारे में बताने की कोशिश करूँगा कि What I think?
धर्मनिरपेक्षता क्या है? (कुछ किताबो के अनुसार )
इसका अर्थ है जीवन के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं से धर्म को अलग करना, धर्म को विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत मामला माना जाता है। 'धर्मनिरपेक्ष'शब्द का अर्थ है 'धर्म से अलग'होना।
इस परिभाषा को पढ़ने पर सिर्फ इतना समझ में आता है कि सनातन धर्म को छोड़कर नास्तिक बन जाओ, अपने धर्म की बात न करो तब आप धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति समझे जायेंगे।
यह उनका काम रहा है जो सनातन धर्म को समाप्त करना चाहते है। क्युकी वे सनातन धर्म की बात करने को मना करते है, अन्य धर्म के त्यौहार पर तो ये बुद्दिजीवी और नेता खीसे बघारते फिरते है।
खैर मैं अपने टॉपिक बात पर आता हूँ कि
What I Think about Secularism?
सबसे पहले धर्म को समझो -
धर्म का अर्थ है = निस्वार्थ रूप से मानव कर्तव्यों का निर्वहन करना, और ईश्वर को अपने-अपने भावानुसार प्रेम करना।
धर्मनिरपेक्ष का अर्थ = सभी धर्मो का न्यायोचित सम्मान करते हुए, देश को सर्वोपरि रखना (शांति, सुरक्षा, न्याय, सहायता)।
अब दोनों परिभाषाओं में पृथ्वी और आकाश जितना अंतर प्रतीत होता है क्युकी पहली परिभाषा में धर्मनिरपेक्ष'शब्द का अर्थ है 'धर्म से अलग'होनाबताया है जबकि दूसरी परिभाषा में धर्म को साथ रखकर देश के लोगो को न्यायदेने की बात की गयी है।
अब आप खुद सोचिये कि -
- जाति के अनुसार सरकार की सहायता देना।
- जाति के अनुसार सरकारी नौकरी, पैसा, घर, लैपटॉप, साइकिल, स्कूटी और सभी सुविधाएं सहायता के नाम पर देना।
- वोट बैंक के लिए अलग अलग धर्म के लोगो के लिए अलग अलग कानून,
- इफ्तार पार्टी में शामिल होना धर्मनिरपेक्षता पर अगर कोई जय श्री राम बोले तो वो सांप्रदायिक ।
- मंदिरो के पैसे हड़प कर, अन्य धर्मो के लोगो में बांटना, उनके तीर्थयात्रा और त्यौहार में पैसे बांटना
- एक धर्म के लिए बोर्ड बनाना, जिसके जमीन मालिक वे स्वयं होंगे, अर्थात भारत की बटवारे में बची जमीन जो अन्य धर्मो के लिए थी उसको भी चोरी चुपके ख़ास धर्म के बोर्ड को सौंपते जाना
- सिर्फ कुछ ख़ास धर्मो को प्रोत्साहन और उनके शिक्षा संस्थानों के लिए सरकार पैसे देती हो, जबकि दूसरे धर्मो की संस्कृत को भी बंद करवा दिया गया।
- सनातन धर्म को तोड़ने के लिए निरंतर कार्य जैसे कि मंडल Vs कमंडल, क्षत्रिय Vs ब्राह्मण, क्षत्रिय/ब्राह्मण vs सूद्र/वैश्य, जाट Vs ठाकुर, गुर्जर Vs क्षत्रिय/ब्राह्मण इत्यादि खेल के मैदान तैयार करना जिसमे खून सिर्फ सनातनियो का बहता है। गरीब सिर्फ सनातनी बनता है।
ऐसे अन्य तुष्टिकरण के उदाहरण है, जिन्हे ये लोग इसे धर्मनिरपेक्षता कहते आये है।
क्या आपको भी ऊपर बताये गए उदाहरण में से एक भी धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण दीखता है? तो फिर भारत धर्मनिरपेक्ष देश कैसे है ?
जबकि होना क्या चाहिए था -
- सभी धर्मो के व्यक्तियों को उनकी आर्थिक स्थिति के अनुसार सरकारी सहायता मिलनी चाहिए थी।
- धर्म के आधार पर सजा या कानून का न्याय ना मिले, कानून के हिसाब से सब समान होने चाहिए थे ।
- धर्म के आधार पर स्त्रियों के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए था जैसे कि बहु-विवाह, सगे सम्बन्धियों द्वारा बलात्कार (हलाला ), तलाक़ इत्यादि
- सभी के धर्म परिवर्तन पर उसके माता-पिता की आज्ञा पत्र होना चाहिए था।
( क्युकी विवेकानंद ने कहा था- एक हिंदू का धर्मान्तरण एक शत्रु का बढ़ना है, इससे उस धर्म के भविष्य पर खतरा पैदा न हो )
तो अगर आप भी ऐसी पार्टी को वोट देते है जिसमे आपकी जाति का नेता है लेकिन धर्मनिरपेक्ष के नाम का सहारा लेकर आपकी जाति का नेता, अधर्म की राजनीति अर्थात तुष्टिकरण कर रहा है तो उसके पाप में आप भी बराबर के भागिदार होंगे।
अर्थात आपका वोट अधर्म को है। और उस नेता ने स्वार्थ के रूप में अपना धर्म परिवर्तन करके बहरूपियाँ बन गया है।
हे भारत के मनुष्यो सावधान। अगर थोड़े सी भी आस्तिकता बची है, और उपरवाले पर विश्वास है तो धर्म से ज्यादा स्वार्थ को महत्त्व न दे, नहीं तो अपनी पीढ़ी को अफगानिस्तान जैसे हालात देने के जिम्मेदार आप ही होंगे, और आपकी पीढ़ी अपने पूर्वजो (आपको ) को कोसती रहेगी। जिन बच्चो के स्वार्थ के लिए आप अधर्म का साथ दे रहे है, जब वही नहीं बचेंगे या अपनी पहचान खो देंगे तो क्या फायदा ऐसी स्वार्थ की वोटिंग का। सोचिये अवश्य